Misleading Ads Supreme Court Directs States UTs Set Up Grievance Redressal Mechanism.

भ्रामक विज्ञापन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि दो महीने में शिकायत निवारण तंत्र बनाएं. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए, जिससे कानून के तहत लोग शिकायत दर्ज करा सके. प्रतिबंधित व आपत्तिजनक विज्ञापनों के बारे में शिकायत दर्ज करा सके.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे जनता को भ्रामक विज्ञापनों की रिपोर्ट करने के लिए उचित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करें, खास तौर पर ड्रग्स और मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के तहत प्रतिबंधित विज्ञापनों को लेकर कदम उठाने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने कहा कि ऐसे विज्ञापन “समाज को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं” और नियामक निगरानी की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया.

दो महीने के अंदर शिकायत तंत्र बनाने का निर्देश

जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने दो महीने के भीतर इन तंत्रों के निर्माण का आदेश दिया और राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इनका व्यापक प्रचार किया जाए. पीठ ने कहा, “हम राज्य सरकारों को आज से दो महीने की अवधि के भीतर उचित शिकायत निवारण तंत्र बनाने और लगातार अंतराल पर उपलब्धता का पर्याप्त प्रचार करने का निर्देश देते हैं.”

कोर्ट ने राज्य सरकारों से 1954 के अधिनियम के प्रवर्तन के संबंध में अपनी पुलिस मशीनरी को संवेदनशील बनाने का भी आह्वान किया, जो जादुई उपचारों और असत्यापित दावों, खास तौर पर दवाओं और स्वास्थ्य उपचारों के संबंध में विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है. यह निर्देश भ्रामक विज्ञापनों पर न्यायालय की व्यापक कार्रवाई का हिस्सा है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी याचिका

7 मई, 2024 को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए न्यायालय ने आदेश दिया था कि केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के अनुरूप, किसी भी विज्ञापन के प्रकाशन से पहले विज्ञापनदाताओं से स्व-घोषणा प्राप्त की जाए.

यह मुद्दा शीर्ष अदालत ने 2022 में भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उठाया था. IMA ने आरोप लगाया था कि टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा के खिलाफ एक बदनाम करने वाला अभियान चलाया जा रहा है. गलत सूचना फैला रहे हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है.

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